Friday, August 24, 2012

एक पागल आदमी की चिट्ठी

एक

एक नाम लिखा होता है
एक अस्पष्ट -सा चित्र बना होता
जिसमें कई चेहरे होते हैं
कोई भी चेहरा साबुत नहीं

कुछ जरूरी शब्द धुंधलाए

पिघल गए होते हैं खारे पानी से

वह जीवन भर रहती है

एक गंदे पोटले में

एक पागल आदमी की चिट्ठी 

कभी पोस्ट नहीं होती...।

दो 

पागल आदमी की चिट्ठी में
प्रेम नहीं लिखा होता
प्रेम की जगह एक लिपि अंकित होती है
उसे आप ब्राह्मी, खरोष्ठी या कैथी से तुलना नहीं कर सकते
वह एक अन्य ही लिपि होती है
समझने की शक्ति जिसे दुनिया के सारे भाषाविद खो चुके हैं

पागल आदमी की लिपि को


समझता है एक दूसरा पागल आदमी
और बहुत ऊंचे स्वर में रविन्द्रनाथ का लिखा
कोई एक बाऊल गीत गाता है
गाते हुए उसके गले की नीली नसें
फूल कर मोटी हो जाती हैं

वह हर रात सोने के पहले
कागज के कई टुकड़े निकालता है
तसल्ली करता है कि वे सभी साबुत और जिंदा हैं

बाद इसके वह झर-झर रोता है
पोंछता है खुद अपने आंसू
कई पुराने कागज के टुकड़े उसके चारों ओर खड़े हो जाते हैं
इबाबत की मुद्रा में

पागल आदमी के रोने की आवाज
दुनिया का एक भी आदमी नहीं सुनता..।

तीन 





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