उत्तर प्रेम -1
भूखे नट की तरह एक पतली रस्सी पर चलता हूं
शिकारी की आंख से हरिण की तरह खुद को बचाता
ढेर सारे झूठ सच की तरह बोलता जैसे ढेर सारे सच झूठ की तरह
आसमान की ओर मुंह करके
पता नहीं किसकी सलामती की दुआ करता हूं
शिकारी की आंख से हरिण की तरह खुद को बचाता
ढेर सारे झूठ सच की तरह बोलता जैसे ढेर सारे सच झूठ की तरह
आसमान की ओर मुंह करके
पता नहीं किसकी सलामती की दुआ करता हूं
खुद को खुद ही संबोधित करता जैसे कोई पागल फकीर (कि लालन फकीर)
नदी के गंदे पानी को अमृत की तरह पीता
किसी छूट गए लोक में अलोपित हो गए पितरों के चेहरे याद कर
रोता हूं पोंका फाड़
नल खोलकर भूल जाता बंद करना बंद नल को खोलना जैसे भूलता
धूप से जलकर पूरे शरीर में पड़े फफोले
चूल्लू भर पानी में डूब-डूब मरा
सब्जियां खरीदता जबकि सब्जियों के स्वाद नीम में बदल जाते
आटा गुंथता कि सारा आटा काले कींचड़ में बदल जाता
नदी के गंदे पानी को अमृत की तरह पीता
किसी छूट गए लोक में अलोपित हो गए पितरों के चेहरे याद कर
रोता हूं पोंका फाड़
नल खोलकर भूल जाता बंद करना बंद नल को खोलना जैसे भूलता
धूप से जलकर पूरे शरीर में पड़े फफोले
चूल्लू भर पानी में डूब-डूब मरा
सब्जियां खरीदता जबकि सब्जियों के स्वाद नीम में बदल जाते
आटा गुंथता कि सारा आटा काले कींचड़ में बदल जाता
वह लोक गीत जिसे बचपन में गाया करता था
मेरे गांव का सबसे बूढ़ा आदमी
उसके हर्फ को किसी अबोध लड़की की तरह
निलाम कर दिया गया
(कहते हैं कि गान्ही महात्मा जब आते थे
हमारे इलाके में तो उनके भाषण के पहले
वही गीत गाता था मेरे गांव का वह बूढ़ा
आदमी)
बचपन के सारे दोस्त बन गए बंधुआ मजदूर
चले गए सूरत, दिल्ली, नोएडा या अरब देस
रिश्तेदार सारे जबरन ठूंस दिए गए किसी
यातना शिविर में
सारे हथियार जिनसे लड़ना चाहता शब्दों में बदल जाते
सारे हथियार जिनसे लड़ना चाहता शब्दों में बदल जाते
भर नींद सोने नहीं देते मुझे
सिर्फ मैं ही जानता हूं कि असल में वे शब्द नहीं
तलवार, लाठी, माऊजर और मशीन गन हैं
मेरे उपर ही तने मुझे ही डराते
बावजूद सबके
किसी के लिए अब भी मेरे पास हैं असंख्य कविताएं लिखने को
जैसे असंख्य रोटियां हैं बनाने को किसी के लिए
बावजूद सबके
किसी के लिए अब भी मेरे पास हैं असंख्य कविताएं लिखने को
जैसे असंख्य रोटियां हैं बनाने को किसी के लिए
क्या करूं मैं
आजकल शब्दों के चेहरे इस देश के चेहरे की तरह दिखने लगे हैं
हैं वहां असंख्य दाग
जो मिटने की बजाय होते जाते है और अधिक गहरे
एक पूरी जमात के साथ मैं भी खड़ा हूं
कटघरे में
योर ऑनर मैं निर्दोष हूं की रट लगाता
...योर ऑनर..
क्षमा कीजिए मुझे मैं शब्द हूं और इस
तरह आपका और इस देश का ब्रह्म हूं मैं
मैं क्या करूं
जैसे रहता आया हूं सदियों से इसी अभागे देश में
वैसे ही शब्दों से करता हूं प्यार...
जैसे रहता आया हूं सदियों से इसी अभागे देश में
वैसे ही शब्दों से करता हूं प्यार...
और देखिए कि हजार-हजार मरण के बाद
अब भी जिंदा हूं मैं
........
आपको मेरी बेशर्मी ( बेवशी) पर हंसी आती है..??
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